प्रथम-गुरू | Pratham guru kavita
“प्रथम-गुरू”
( Pratham guru )
गुरु है ब्रम्हा-गुरु है विष्णु, गुरु हैं मेरे महेश्वरा
प्रथम गुरु मेरे मात-पिता, दिया जनम दिया आसरा
उनके जैसा धरती में क्या, नहीं अम्बर में भी दूसरा
पाल-पोस कर बड़ा किया, नहीं होने दी कमी कोई
प्यार नहीं कोई उनके जैसा, न ही मिलावट है कोई
गुरु है ब्रम्हा,गुरु है विष्णु, गुरु है मेरे महेश्वरा
ममता भरे आंचल तले, दी हमें शरण सदा मात ने
सर्दी-गर्मी या हो बरषा, मां रही हमारे साथ में
बड़े हुए तो पढ़ने भेजा, दे खाना पीना साथ में
भले बुरे का बता के मतलब, समझाती हर बात में
गुरु है ब्रम्हा,गुरु है विष्णु, गुरु हैं मेरे महेश्वरा
विद्यालय में गुरु-जन मिले तो, पाठ पढ़ाया ज्ञान का
सभी बड़ों का आदर करना, खुद के भी सम्मान का
ज्ञान दिया अनमोल रतन, नहीं चोर चुराये कोई
जीवन का सब लक्ष्य बताया, कमी न छोड़ी कोई
गुरु है ब्रम्हा,गुरु है विष्णु, गुरु हैं मेरे महेश्वरा
मात-पिता और गुरु को पूजो, काम करो फिर दूजा
इस पूजा से बढ़ कर नहीं है, जग में और कोई पूजा
तीनों का है देन ये जीवन, सदा मान रखो तीनो का
साक्षात्कार कराया ईश्वर से, सम्मान करो तीनों का
गुरु है ब्रम्हा,गुरु है विष्णु, गुरु हैं मेरे महेश्वरा
कवि: सुदीश भारतवासी
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Comment: thank you admin,and teem..