
कागज की कश्ती
( Kagaz ki kashti )
कागज की कश्ती होती
नन्हे हाथों में पतवार
कौन दिशा में जाना हमको
जाने वो करतार
आस्था विश्वास मन में
जाना है उस पार
बालपन का भोलापन
क्या जाने संसार
भाव भरी उमंगे बहती
नन्हे बाल हृदय में
चंचल मन हिलोरे लेता
बालक के तन मन में
एक कागज की कश्ती से
वो घूम रहा संसार
जग रखवाला जाने
नौका कैसे होगी पार
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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