कमरे की घुटन
( Kamare ki ghutan )
बंद कमरे में सिमट कर रह गई दुनिया सारी
टूट रहे परिवार घरों से बिखर गई है फुलवारी
मनमर्जी घोड़े दौड़ाए बड़ों का रहा लिहाज नहीं
एकाकी सोच हो गई खुलते मन के राज नहीं
बंद कमरों की घुटन में नर रहने को मजबूर हुआ
टूट रही रिश्तो की डोर घुटन से चकनाचूर हुआ
अब ना कोई हाल पूछता राय मशवरा भी क्यों दे
प्रेम दिलो में रहा नहीं सब दूर दूर बस दूर रहे
वो भी एक जमाना था खत दूर तलक से आते थे
बार-बार समाचार पढ़ते हम फूले नहीं समाते थे
घर के सारे आपस में मिल दुख दर्द बांटने थे
खेतों में मिल काम करते सुख के दिन काटते थे
घुटन भरे माहौल से निकल खुली हवा में सांस लो
प्यार के मोती लुटाओ मन में अटल विश्वास भर लो
काम औरों के भी आओ स्वार्थ का परित्याग कर
खुशहाली का जीवन जिए दुनिया में अनुराग भर
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )