ख़्याल | Kavita Khayal
ख़्याल
( Khayal )
ढली है शाम ही अभी , रात अभी बाकी है
हुयी है मुलाकात ही, बात अभी बाकी है
शजर के कोटरों से, झांक रहे हैं चूजे
पंख ही उगे हैं अभी, उड़ान अभी बाकी है
अभी ही तो, उभरी है मुस्कान अधरों पर
मिली हैं आँखें ही अभी, दिल अभी बाकी है
आतुर हैं मन के परिंदे, अर्श की चाहत में
जागी हैं उमंगे ही, उड़ान अभी बाकी है
लिखने हैं इतिहास कई, किताब के पन्नो में
उभरे हैं खयाल ही, लेखनी में अभी बाकी हैं
मिल जाए साथ अगर, सफ़र में आपका
जज़्बात ही जागे हैं मगर,जुनून अभी बाकी है
( मुंबई )
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