बाप
बाप
( Baap )
१.
बाप रहे अधियारे घर में
बेटवा क्यों उजियारे में
छत के ऊपर बहू बिराजे
क्यों माता नीचे ओसारे में
२.
कैसा है जग का व्यवहार
बाप बना बेटे का भार
जीवन देने वाला दाता
क्यों होता नहीं आज स्वीकार
३.
कल तक जिसने बोझ उठाया
आज वही क्यों बोझ बना
कल तक जिसको अपना माने
आज वही क्यों करें मना
४.
जिसके लिए वह मंदिर मस्जिद
सगरो मन्नत मांगी
आज उसी के दिल में
क्यों प्रीत अधूरी जागी
५.
जिसके ऊपर ममता सारी
पिता ने कर दी अर्पण
आज उसी के दिल में
क्यों भाव नहीं समर्पण
६.
कैसे रिश्ते बदल रहे हैं
कैसा बदल रहा इंसान
हाल वही अपना भी होगा
फिर भी नहीं “रूप” का ज्ञान


कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)
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