किसानों का दर्द | Kavita Kisano ka Dard
किसानों का दर्द
( Kavita Kisano ka Dard )
देख कर फसलों की सूरत
जीवित है कौन?
टूटकर बिखरा है हृदय
तन मन है मौन
छींट कर बीजों को मैंने
उम्मीद पाली,
काट दिया अब हाथ जैसे
यह वर्फ जाली।
कष्ट भरा किससे कहें हम
अपनी कहानी,
ले गया आशाएं सारा
बरसात पानी।
उम्मीद रही बस एक ही
फसलें किसानी,
बह गया पानी में सारा
होकर पानी।
लिए शादियां सर पर खड़ी
नौजवां बेटी,
अस्त व्यस्त सब हो गए हैं
व्यापार खेती।
बिछ गये धरती पर मानो
ओलें बिछौने,
टूट कर फसलें गिरे हैं कि
हो गये बौने।
न केवल टूटे हैं फसलें
टूटें सुसपनें,
देखते बस रह गये हम
तकदीर अपने।
रख दूं घर गिरवी कहां अब
इस पेट खातिर,
कि मैं मरूं फिर जान देकर
जिंदा रहूं फिर।
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी
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