Karma par Kavita
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मानव या दानव कर्मों से

( Manav ya danav karmo se )

 

अच्छाई के पथ पर चलते वो मानवता होती है।
लूटमार चोरी अन्याय कर्मों से दानवता होती है।

मानवता आदर्श दिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम।
धर्म निभाया रामचंद्र ने करुणा सिंधु हो निष्काम।

दशानन दंभ में झूमा जब बढ़ा धरा पे पापाचार।
दानवता ने पांव पसारे हुआ मनुज राम अवतार।

देव भाव आसुरी प्रवृत्ति मनोभावों में पलते है सब।
कुंभकरण मेघनाथ भी नर आचारो में चलते अब।

दया क्षमा परोपकार की भावना जब जग जाती है।
देवपुरुष सा मानव लगता बातें दुनिया को भाती है।

छल कपट लोभ लालच जब नर पे हावी होता है।
हाहाकार मच जाती है तब भ्रष्टाचार भारी होता है।

सत्कर्मों से सुपथ चल मानवता धर्म निभाना है।
सद्भावों की धारा में हमको प्रेम रस बरसाना है।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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