
मैं फ़कीर वो बादशाह
( Main faqeer o baadshah )
दीन दुःखी के मालिक हो, हो करूणा अवतार
मेरी भव बाधा हरो, आन पड़ी हूं द्वार।
तुम सम दानी नहीं,हम सम याचक और,
मैं फ़कीर वंदन करुं, चरणों में मांगू ठौर।
तुम हो जग के बादशाह, मेरी क्या औकात।
तुमने दी सांसें मुझे, तुमने दी है गात।
नित- नित मैं सुमिरन करुं, विनय करुं दिन-रात,
सद्कर्म करती रहूं, चाहूं यही सौगात।
अंतर्यामी ऊपर बैठा, जगत पसारे हाथ,
सबकी झोली भरता वो, दुःख में देता साथ।
पारब्रह्म परमेश्वर की, रचना है महान,
रंग रूप गुण भिन्न है, फिर भी एक इंसान।
मैं फ़कीर जग से जाऊॅ॑, ले कर्मों की किताब,
लेखा जोखा करें बादशाह,पल पल का करें हिसाब
कवयित्री: दीपिका दीप रुखमांगद
जिला बैतूल
( मध्यप्रदेश )
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