नारायणी का अवतार नारी
( Narayan ka avatar nari )
नारायणी का अवतार है नारी,
देवताओं पर भी तू पड़ें भारी।
तुम ही हो करूणा का ये रुप,
सहनशील व अन्नपूर्णा स्वरुप।।
तुमसे ही मानव जग में आया,
धरती पर शान-शौकत पाया।
जगत-जननी व कहलाती माँ,
एक है धरती एवं दूसरी है माँ।।
माॅं सरस्वती का रूप है तुझमे,
शैलपुत्री व कात्यायनी तुझमे।
माता दुर्गा महालक्ष्मी स्वरूपा,
तुझमे गौरा काली कुश्माण्डा।।
आज पताका यह लहर रहा है,
सभी जगह परचम हो रहा है।
तुमने वो सब करके दिखलाया,
सोच सके नहीं सपने में साया।।
पर्वत पहाड़ आकाश व पाताल,
जल थल व नभ में घूम आया।
राजनीति अभिनेत्री और मन्त्री,
बनकर घूमें शिक्षिका कवयित्री।।
बिटियाॅं बीबी एवं माता हो तुम,
घर में सबकी हमजान हो तुम।
उदय करता आप सबको नमन,
कोई है माँ और कोई यह बहन।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )
आदरणीय बहुत अच्छा लिखा है