Kavita Pahchan
Kavita Pahchan

पहचान

( Pahchan )

 

हम खामोश ही रहे
और वो बोलते चले गए
शुरू हि किया था हमने बोलना
और वो उठकर चले गए

यही हाल है आजकल के अपनों का
न गिला रखते हैं न शिकायत करते हैं
माहिर हो गए हैं वो वक्त के
बस बोलने की कला रखते हैं

उम्मीद रख लो चाहो तो
पर पूरी पहले उनकी हो
व्यस्तता का आलम यह है कि
किसी वादे को याद रखना मुमकिन नहीं

कसूर उनका भी नहीं, मजबूरी है
अकेले हम हि नही दरीचे मे
भरी महफ़िल में हमारी पहचान हो
यह हम भी तो नही चाहते

पहुँचना यहाँ तक आसान उन्हे भी नही था
हमारी कोशिशें भी कम नही रही
गलती उनकी भी नही रही
स्वाद की ललक हमारी भी कम नही रही

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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