Phagun par kavita
Phagun par kavita

फागुन

( Phagun )

 

फागुन की दिन थोड़े रह गए, मन में उड़े उमंग।
कामकाज में मन नहीं लागे, चढ़ा श्याम का रंग।

 

रंग  बसंती  ढंग  बसंती,  संग  बसंती  लागे।
ढुलमुल ढुलमुल चाल चले,तोरा अंग बसंती लागे।

 

नयन से नैन मिला लो हमसे, बिना पलक झपकाए ।
जिसका पहले पलक झपक जाए, उसको रंग लगाए।

 

बरसाने में राधा नाचे, और संग नाचे श्याम।
सीता के संग अवधपुरी में, होली खेले रघुराम।

 

काशी में शिव शंभू भंग संग, मस्ती करे धमाल,
आओ मिलकर हम भी खेले,फाग में रंग गुलाल।

 

पीली पीली सरसों खिल गये, फागुन बहे बयार।
नीला पीला लाल गुलाबी ले, हरा रंग हुंकार।

 

सब पर मस्ती चढ़ी फाग का, देवर हो या भतार।
आकर तुम भी खेलो लो हम है, शेर सिंह हुंकार।

 

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शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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