भूख और पेट
( Bhookh aur pet )
सड़क पुल नदियों को निगले डकार नहीं लेते
आंधी है या कोई तूफान बहार आने नहीं देते
कुछ को धन की भूख है कुछ का पेट बहुत बड़ा
जाने कितने ही घोटालों का हंगामा हो गया खड़ा
भुखमरी बेरोजगारी अब गरीबी दूर होनी चाहिए
दो वक्त की रोटी मिले हर हाथ को काम चाहिए
भूखा प्यासा दिन-रात किसान खून पसीना बहाता
लहलहाती फसल धरा पर वो अन्नदाता कहलाता
जिनकी नियत बिगड़ी भूख उनकी मिटती नहीं
जमाखोरी कालाबाजारी कर गरीबी घटती नहीं
बढ़ती महंगाई से लोग भुखमरी का शिकार हुए
पेट जिनका भरा नहीं रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार किये
भगवान भाव के भूखे हैं नर बहुत लालसा रखता
दिव्य ज्ञान के भूखे संत चेहरे से प्रकाश झलकता
संतुलन ना हो तो सरिताओं में बाढ़ आ जाती है
संयम ना हो तो नर की नियत डगमगा जाती है
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )