प्रेम का नाता

प्रेम का नाता | Kavita Prem ka Nata

प्रेम का नाता

( Prem ka Nata )

यह कैसा, प्रेम का नाता है?
कितनी भी ,अनबन हो चाहे ।

यह पुनः ,लौट कर आता है।
जितना बचना ,चाहें इससे ।

यह उतना, बढ़ता जाता है।
हटाकर घृणा, को यह पुनः।

अपना स्थान, बनाता है ।
सबकी चालों, को सहकर भी।

यह हर क्षण , बढ़ता जाता है।
सारे द्वेषों के ऊपर यह ,

विजय सदैव ही पाता है।
यह कैसा,प्रेम का नाता है

Pragati Dutt

प्रगति दत्त

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