Kavita Man ki Baat
Kavita Man ki Baat

मन की बात

 ( Man ki baat ) 

 

मेरा मन बोला मुझ को जाना
देश सेवा अब मुझ को करना
भारत सेना का बनूंगा हिस्सा
रचना है मुझको कोई किस्सा
सारा सच बात बता रहें है हम
मन की बात सुनकर आ गऐ हम।

देश ने जब भी हमको पुकारा
बन कर के निर्बल का सहारा
छोड़ कर के आराम हम सारा
काल और ये जीवन- मरण से
मुक्ति पाते हुए आ गऐ है हम
मन की बात सुनकर आ गऐ हम।

धर्म की इस कटुता को भुलाने
प्रान्त के सभी झगड़े ये मिटाने
शत्रुओं पर विजय को हम पाने
और राष्ट्र की जय घोष के नारे
लगाते हुए अब आ गऐ है हम
मन की बात सुनकर आ गए हम।

शान्ति और धरा के हम प्रहरी
हो निशा चाहे कितनी ये गहरी
चाहे हो चिल-चिलाती दोपहरी
सदैव रहते कर्तव्य-पथ तैयारी
गुनगुनाते हुऐ ही आ गए हम
मन की बात सुनकर आ गए हम।

घोर जंगल या शुष्क मरुस्थल
जानलेवा चाहे कीचड़ दलदल
बाढ़ और भूकंप के यह कंपन
जीवन बचाते हुए आ गए हम
गुनगुनाते हुऐ ही आ गए हम
मन की बात सुनकर आ गए हम।

दुख: संकटो का विनाश करने
निर्धन दीन की पीड़ा को हरने
तन मन प्राण की बाजी लगाने
समूल नक्शल उग्रवाद मिटाने
गुनगुनाते हुऐ ही आ गए हम
मन की बात सुनकर आ गए हम।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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