Kavita Pyar ki
Kavita Pyar ki

प्यार

( Pyar ) 

 

जहां पशुता और पुरुषत्व खत्म होता है
वहाँ प्यार का फूल खिलता है

जहां अधिकार की नहीं सम्मान की भाव हो
वहीं प्यार फूलता और फलता है

जहां वर्चस्व की कोई जगह नहीं बचता
वहाँ पर ही प्यार पनपता है

ना कोई छल कपट ना धोखा हो जहां
वहाँ प्यार अपनी पूरी उम्र जीता है

दो की नहीं दिल में एक की जगह हो
वहां प्यार कभी नहीं मरता है

छाया की तरह काला नहीं आईना की तरह सफेद हो मन
वहां पर सिर्फ और सिर्फ प्यार मिलता है

तुम और मैं की बात ही ना हो जहां
वहां से प्यार कोई छीन नहीं सकता है

मन में कुछ और, और दिल में कुछ और हो जहां
बताओ वहां प्यार कैसे अपनी उम्र जी सकता है

अपनत्व और स्त्रीत्व की भाव हो जहां
वहाँ प्यार कभी भी साथ नहीं छोड़ता है।

 

रचनाकार – रूपक कुमार

भागलपुर ( बिहार )

यह भी पढ़ें :-

बूँदों की सरगम | Boondon ki Sargam

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here