Boondon ki Sargam
Boondon ki Sargam

” बूँदों की सरगम “

( Boondon ki sargam )

 

बूंँदों की रुन झुन है सावन में
या कहीं सरगम बज़ी।
हवाओं की थिरकन है
या मौसम ने नयी धुन है रची!

जुगलबंदी करती हवा
छेड़- छेड़ फुहारों को,
दोहरा रही बंदिश वही
ख़ुशामदीद है सावन की,
लपक – झपक कटार सी
चमकती तड़ित कह गयी अभी।

सुन थम – थम ,रुक -रूक , झम-झम
बारिशों के ये आरोह – अवरोह।
प्रकृति भी लगी गुनगुनाने,
नये सुर , नये नगमे ,नयी तानें
संदली- संदली हुआ समां
वादियांँ सुरमई सी सजी।

कहीं मंद्र, कहीं तीव्र स्वर
जीवन की यह लय अमर
गाते चले मेघ मल्हार
हिलौरे लेता जैसे हरसूं प्यार
ताल पर झूमें मयूर हसीं ।

छिड़ी सप्तसुरों की बंसी
सुध – बुध खोये से नजारे
मस्त- मग्न पशु -पंक्षी सारे।
नव श्रृंँगार से हर्षित प्रकृति
रंगबिरंगे फूलों ने पायी हंँसी।

भिगो- भिगो गयी तन- मन
बारिशों की यह मीठी सरगम
प्रकृति को मिले सुर जो नये
मंत्र मुग्ध हो सारा आलम,
सिमट गया यहीं,बस यहीं।

 

@अनुपमा अनुश्री

( साहित्यकार, कवयित्री, रेडियो-टीवी एंकर, समाजसेवी )

भोपाल, मध्य प्रदेश

 [email protected]

यह भी पढ़ें :-

जो कुछ उम्दा | Jo Kuch Umda

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here