संत संगति | Kavita Sant Sangati
संत संगति
( Sant sangati )
सज्जन साधु संगत कर लो बेड़ा पार हो जाएगा।
बिनु सत्संग विवेक नहीं उजियारा कैसे आएगा।
संत सुझाए राह प्रेम की हरि मिलन विधि सारी।
मंझधार में अटकी नैया हो पतवार पार संसारी।
दीप जलाए घट घट में करें ज्ञान ज्योति आलोक।
दिव्य प्रभा सुखसागर सी जीवन को करें अशोक।
ऋषि मुनि साधु संत योगी तपस्वी मुनिराज।
संत समागम सुख देता खुशियों का है आगाज।
शील दया धर्म सिखाए वरदानों से झोली भरते।
त्याग तपस्या योग बल वह दुनिया के कष्ट हरते।
संत सदा देते रहते कर परोपकार जीवन भर।
कुदरत की भांति जीते औरों का भला करो नर।
सन्मार्ग सत्संग से देते हमको संस्कृति का ज्ञान।
प्रगति पथ पे हमें बढ़ाते उन्नति का दे वरदान।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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