
गैरों में तुम अपने लगते हो
( Gairon mein tum apne lagte ho )
मनमोहक चितचोर कहूं, मस्त सुरीले सपने लगते हो।
दिल के जुड़े तार प्रेम के, गैरों में तुम अपने लगते हो।
गैरों में तुम अपने लगते हो
प्रेम सद्भावों की नेहधारा, मीठे मीठे बोल मधुर से।
मोहक मुस्कान लबों की, झरते प्यारे गीत अधर पे।
धक धक दिल की धड़कन बोले, दीवाने से लगते हो।
कोई फरिश्ता उतर आया, तुम देवदूत से दिखते हो।
गैरों में तुम अपने लगते हो
सुख-दुख हाल-चाल सब, पूछ लेते हो क्या है हाल।
पग पग सहारा बन जाते, कभी बन जाते हो ढाल।
जाने कब का रिश्ता है ये, जाने पहचाने लगते हो।
वक्त पड़े हर मुश्किल में, हीरो की खाने लगते हो।
गैरों में तुम अपने लगते हो
खुशियों में खुश होकर, पीर देख दुखी हो जाए।
दूरियां सह नहीं पाते, चाहे कितने भी तूफां आए।
रंग बदलती दुनिया में तुम, कोहिनूर बने लगते हो।
ऐसा मोती मिला हमको, स्वर्ग से सुंदर लगते हो।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )