शंख नाद | Kavita Shankh Naad
शंख नाद
( Shankh Naad )
माताओं, बहनों, बालाओं,
तैयार हो जाओ ललनाओं,
अब गूंज उठा है शंख नाद,
हथियार उठाओ ललनाओं,
मांगा अधिकार गगन मांगी,
जब उफ है किया देहरी लांघी,
फिर सबल भी कंधों को कर लो,
अब अबला मत कहलाओ,
अब गूंज उठा है शंख नाद,
हथियार उठाओ ललनाओं,
सदियों से बनी रही सरला,
प्रेम दिखाया दुनियाॅ को,
अंगार भरो अपने दिल में,
अब आग दिखाओ ललनाओं,
अब गूंज उठा है शंख नाद,
हथियार उठाओ ललनाओं,
प्रेम की मूरत हो और रहोगी,
लेकिन कब तक घाव सहोगी,
प्रेमी को तुम प्रेम करो,
पर अतातायी पर वार करो,
अब गूंज उठा है शंख नाद,
हथियार उठाओ ललनाओं,
नहीं है ये युग रामच॔द्र का,
नहीं है ये युग गोविंद का,
कल्कि बन कलयुग का दिखलाओ,
संहार करो अब ललनाओं,
अब गूंज उठा है शंख नाद,
हथियार उठाओ ललनाओं,
स्वाभिमान पे जब बन आए,
कोई अत्याचार बहुत ढ़ाए,
बनो कालिका तलवार उठाओ,
हुंकार भरो तुम ललनाओं,
अब गूंज उठा है शंख नाद,
हथियार उठाओ ललनाओं,
मरना है मर ही जाएँगे,
पर डर के ना जी पाएंगे,
अब मारे कुकर्मी जाएँगे,
ये कसम उठाओ ललनाओं,
अब गूंज उठा है शंख नाद,
हथियार उठाओ ललनाओं,
जर हो जमीन हो या जोरू,
मानव हो पक्षी या गोरू,
जिस पर नजर पड़े दुश्मन की,
नोच के आँख वो दिखलाओ,
अब गूंज उठा है शंख नाद,
हथियार उठाओ ललनाओं।
आभा गुप्ता
इंदौर (म. प्र.)