Kavita titli ban ud jau
Kavita titli ban ud jau

तितली बन उड़ जाऊं

( Titli ban ud jau )

 

नीले अंबर खुले आसमां तितली बन उड़ जाऊं।
सारी दुनिया घूम के देखूं महकूं और मुस्काउं।

 

डगर डगर गांव-गांव देखूं सारे रंग अलबेले।
हौसलों के पंख लगा देखूं दुनिया के मेले।

 

हिम्मत और हौसलों से कुछ करके मैं दिखलाऊं।
देखूं दुनिया के नजारे नया अनुभव फिर पाऊं।

 

खिलते हुए चमन की खुशबू दूर दूर तक ले जाऊं।
हंसते रहना जीव जगत में सब को संदेश सुनाऊं।

 

प्रेम सुधारस मोती बांटूं हर दीनों के दुख सारे।
भगवन मुझको शक्ति देना सारे जग के रखवारे।

 

प्रेम भरा संदेशा लेकर उड़ती फिरूं सारे जहान में।
तितली बन उड़ जाऊं मैं स्वछंद खुले आसमान में।

 

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रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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