![व्रीड़ा व्रीड़ा](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2024/07/व्रीड़ा-696x403.jpg)
व्रीड़ा
( Vrida )
खोया स्वत्व दिवा ने अपना,
अंतरतम पीड़ा जागी l
घूँघट नैन समाए तब ही,
धड़कन में व्रीड़ा जागी ll
अधर कपोल अबीर भरे से,
सस्मित हास लुटाती सी,
सतरंगी सी चूनर ओढ़े,
द्वन्द विरोध मिटाती सी,
थाम हाथ साजन के कर में
सकुचाती अलबेली सी,
ठिठक सिहर जब पाँव बढ़ा तो,
ठाढ़ी रही नवली सी ll
आई मन में छाई तन में,
चौक सिहर सब बंध गए l
हुआ गगन स्वर्णिम आरक्तिक,
खग कलरव सब बंध गए ll
चपल चमक चपला सी मन में,
मेरे मन को रोक लिया l
कैसे करूँ अभिसार सखी मैं,
उसने मुझको टोक दिया ll
सुशीला जोशी
विद्योत्तमा, मुजफ्फरनगर उप्र