वृद्ध मां बाप | Kavita Vridh Maa Baap
वृद्ध मां बाप
( Vridh maa baap )
वृद्धाश्रमों में जब किसी के मां बाप रोते और बिलखते हैं,
उस पुत्र के लिए बददुआ के लाखों बिजलियां कड़कते हैं।
पैदा करने से जवानी तक जो हमें खून पिलाकर पालते हैं,
क्यों वृद्ध हो जाने पर वो ही वृद्धाश्रमों में भेजे जाते हैं।
क्या यही कर्तव्य हमारा क्या यही है पुत्र का धर्म,
जिन मां बाप ने जन्म दिया उन्हीं का नहीं समझे मर्म।
जीवन भर जो पुत्र पर स्नेह और ममत्व लुटाते रहे,
अंत समय में वृद्धाश्रमों में एकाकी जीवन बिताते रहे।
कैसी कलयुगी माया है ये है ये कैसी विडंबना,
नौ महीने कोख में पाला जिसे वही पुत्र अब पराया बना।
मां बाप को खुद से दूर करना बहुत बड़ा है पाप,
ऐसा करके मत भूलना तू भी है किसी बच्चे का बाप।
इनके आंखों से बहे एक एक आंसू का एक दिन हिसाब होगा,
जिस दिन तुम्हारा बेटा बड़ा हुआ तुम्हारा भी यही हाल होगा।
मत भेजो इन्हें दूर उस घर से जिसे उन्होंने ही बनाया और संवारा,
जन्मदाता मां बाप को बेघर करो ये ईश्वर को भी नहीं है गंवारा।।
रचनाकार –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )