
बाल सखा हम
( Baal sakha hum )
छोड़ो – तोड़ो बंधनों को,
आज जीने दो हम दोनों को।
बालसखा हम मिलकर,
छप्प-छप्पाई मचाएँगे।
पानी का गीत गाएंँगे,
बूँदों को भी साथ नचाएंँगे।
ये हमारे मस्ती भरे रस्ते,
किसी की परवाह हम कहांँ करते।
बूंँदों में भीगने का आनंद,
घर जा कर बताएंँगे ।
उन्हें भी साथ लेकर ,
छप्प-छप्पाई करवाएंँगे।
( साहित्यकार, कवयित्री, रेडियो-टीवी एंकर, समाजसेवी )
भोपाल, मध्य प्रदेश