Khilkhilaya Karo
Khilkhilaya Karo

खिलखिलाया करो

( Khilkhilaya karo ) 

 

तलब इतनी न अपनी बढ़ाया करो,
दाग-ए-दिल न किसी को दिखाया करो।

गर्म आँसू हैं आँखों में देखो बहुत,
घुट -घुटके न जीवन बिताया करो।

अच्छे लोगों से दुनिया है भरी-पटी,
रोज संग में तू भी खिलखिलाया करो।

जाँ को बेचो नहीं, दिल को बेचो नहीं,
दिल दुखाने से पहले ही आया करो।

सिलसिला टूट सकता न सुख-दुःख का,
अपने लोगों को घर पे बुलाया करो।

जाम पीना है होंठों से पियो मगर,
जरुरत अपनी उन्हें न बताया करो।

खेलो तन्हाइयों के न हाथों कभी,
हाल-ए -दिल तो किसी को सुनाया करो।

कत्ल करती है आँखों से कूचे में वो,
उसकी नाज -ओ -अदा तू उठाया करो।

बुझ जाएगी एक दिन शमा साँसों की,
कमाई मेहनत की घर लाया करो।

उड़ रही हैं फिजाओं में तितली बहुत,
रंग उनके बदन का चुराया करो।

न मकां है चरागों का जहां में कोई,
तू हवा से न मिलके बुझाया करो।

लोग करते रफू मुफलिसी का सुनों,
मजाक यतीमों का तू न उड़ाया करो।

उम्रभर जागने की न दो तू सजा,
अपने पलकों में उसको सुलाया करो।

न सलीका है पीने -पिलाने का ये,
उसका आँसू पलक से उठाया करो।

तलब काँटों की जो भी हो पहले सुनों,
फूल हमदर्दी का ही बिछाया करो।

 

लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक )

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