किन सोचो में गुम हो फ़ैसल

किन सोचो में गुम हो फ़ैसल | Ghazal

किन सोचो में गुम हो फ़ैसल

( Kin sochon mein gum ho faisal )

 

 

किन सोचो में गुम हो फ़ैसल!

इतने क्यूँ गुमसुम हो फ़ैसल

 

औरो की  गलती भी क्या  है

गुनहगार तो तुम हो फ़ैसल

 

झूम उठे जो मन का सावन

बारिश वो रिमझिम हो फ़ैसल

 

बाहर निकलें मेरा दिलबर

ऐसी  कोई  घुन  हो फ़ैसल

 

हसीन   रातें   हसीन   बातें

उजला उजला दिन को फ़ैसल

 

ऐसी  कोई  वीरान  जगह

वीरानी हम तुम हो फ़ैसल

 

दिल मेरा ये कहता है बस

सब के घर गंदुम हो फ़ैसल

 

लोगों जो कहना है कह लो

मां कहती अंजुम हो फ़ैसल

 

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शायर: शाह फ़ैसल

( सहारनपुर )

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