कोकिला उपवन क्यों न आई
कोकिला उपवन क्यों न आई
कोकिला उपवन क्यों न आई
खिली बहारें यहां रुत पतझड़ी
किसलय ने अश्रु बूंदें टपकाई
कोकिला उपवन क्यों न आई
काली आंखें काला वस्त्र
पहन कौन तू देश गई
तेरे गीतों तेरी धुनों से
सजी क्या महफिल नई
कोमल – कोमल पत्ते डाली
चुप थे तुझ बिन न खड़खड़ाए
फाख्ता उदास अमलतास पर बैठी
उसने पंख न फड़फड़ाए
आम्र मंजरी रूठी – रूठी
भ्रमर से घनी रार छिड़ी
कलियों ने न गुंथी वेणी
ज्यों बजी न उनकी शहनाई
कोकिला उपवन क्यों न आई
धूप हवा में कानाफूसी
आज न इमली इतराई
मधुमास की स्वर्ण वेला में
इस गुलशन न बहार आई
कुमुद, कुमुलिनी, कुसुम केतकी
आज न इत्र बिखराया
नाची बूंदें किरणों से मिल
इंद्रधनुष न बन पाया
घूंघट में खुशबू तरुणाई
पवन प्रणय से लज्जाया
मानसरोवर से नीले जल में
बतख मलमल न नहाई
कोकिला उपवन क्यों न आई
शहतूत की लचीली डाल
बैठ शुकी न झूला झूली
पात- पात पगलाए पतंग से
खत लिखना मैना भूली
तितलियां खोई ख्यालों में
चिरैया अपने हाल न थी
शीशम खड़ी पलकें मूंदें
मलय सुरभित मलाल में थी
फिजाओं में फैली धुंधली चादर
सिंदूरी किरणें बहाल न थी
छोर- छोर में फैला मौन
फाल्गुन ने न सांझी गाई
कोकिला उपवन क्यों न आई
खिली बहारें यहां रुत पतझड़ी
किसलय ने अश्रु बूंदें टपकाई
कोकिला उपवन क्यों न आई

बलवान सिंह कुंडू ‘सावी ‘
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