Kya Pahi Pyar hai
Kya Pahi Pyar hai

क्या यही प्यार है

( Kya yahi pyar hai )

 

मुझे उठते बैठते तेरा ही ख़्याल सताता है,
सोते जागते दिल में यही सवाल आता है।

देखता हूँ व्हाट्सएप मैसेज इंस्टाग्राम चैट,
हर घड़ी बस बात करने को दिल चाहता है!

नहीं लगता तेरे सिवाय कहीं भी मन मेरा,
तड़पते दिल को सूकून भी नहीं मिल पाता है।

मुझे क्या हो गया है कोई मुझे बताएं जरा,
कहीं सच में यह प्यार तो नहीं कहलाता है!

भले हो मुझसे कितनी ही ज्यादा दूरी पर,
फिर भी उसे चेहरा आँखें के सामने पाता है।

लगता है इसे ही मोहब्बत कहते हैं सुमित,
उसका नाम सुनते ही दिल मचल जाता है।

 

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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