Laghu Katha Digital Money Order
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लघु कथा: “डिजिटल मनी ऑर्डर”

प्यारे मुन्ना,खुश रहो।

आज पेटीएम से तुम्हारे दिए हुए पैसे प्राप्त हुए, बहुत खुशी मिली। लेकिन उससे ज़्यादा खुशी तब मिलती जब तुम फोन पर मुझसे बात कर लेते। 5 दिन से तुम्हें फोन कर रही हूँ। लेकिन तुम मेरा कॉल नहीं उठा रहे हो।

मैसेज का भी रिप्लाई नहीं कर रहे हो? तुमने पेटीएम के स्क्रीनशॉट के साथ मैसेज में लिखा था कल दीपावली है। आप लोग नये कपड़े और सामान ले आना। बड़े भैया को भी मेरी तरफ से कुछ दिला देना।

मेरे प्यारे बेटे मैं तुझे एक बात कहना चाहती हूँ हाँ माना तेरा भाई तेरे जितना होशियार और तिकड़मबाज नहीं है। लेकिन अपने व्यापार से जो भी कमाता है अपने माँ-बाप की सभी ज़रूरतें पूरी करता है।

तू ने ये कैसे सोच लिया कि उसने हमें कुछ नहीं दिलाया होगा? वह हमारी हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी ज़रूरत का पूरा ख़्याल रखता है। तू ने यह भी लिखा की सामान लेने के बाद मुझे स्क्रीनशॉट भेज देना ताकि मुझे पता चल जाए आप लोगों ने वह पैसे रोजमर्रा की ज़रूरत में खत्म नहीं किए हैं!

अरे बेटा एक बात कहना चाहूँगी जब तूने वह पैसे माँ-बाप को दे दिए हैं तो फिर उन पैसों का हिसाब कैसा? हम उन्हें अपने पास रखें चाहे दान करें! एक बात और कहना चाहूँगी वीडियो कॉल के जरिए ही सही अपना चेहरा माँ को दिखा देना इन बुढ़ी आँखों को सुकून मिल जाएगा।

माँ-बाप की सेवा सिर्फ धन से ही नहीं बल्कि तन-मन-धन तीनों से होती है। खैर तू यह बात कभी नहीं समझेगा। ईश्वर से यही प्रार्थना करूंगी तू दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की करें। खूब पैसे कमाए, तेरा खूब नाम हो।
तुम्हारी माँ ।

शिक्षा: माँ-बाप को बुढ़ापे में बैंक बैलेंस और प्रॉपर्टी से मतलब नहीं होता। हम उनके साथ रहें, समय बिताए यही उनकी अभिलाषा होती है।

 

 सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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