sacha pyar
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प्रभात और संध्या दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे।
नाम तो उनके विपरीत थे। पर दोनों को देखकर यूं लगता था मानो “मेड फॉर ईच अदर” है। कहने को तो उनकी अरेंज मैरिज थी, लेकिन उनके बीच में लव मैरिज से ज्यादा प्रेम था।

प्रभात एक छोटा-सा व्यापारी था और संध्या स्कूल में जॉब करती थी। उनकी ज़िन्दगी मजे से कट रही थी। छोटा-मोटी नोंक झोंक बीच-बीच में होती रहती थी। लेकिन फिर से सब कुछ सामान्य हो जाता था।

एक दिन अचानक रात में दोनों में किसी बात को लेकर ज़्यादा ही झगड़ा हो गया। दोनों एक दूसरे को पीठ दिखा कर सो गए। अब कमाल की बात ये थी की दूसरे दिन उनकी मैरिज एनिवर्सरी थी। लेकिन सुबह में दोनों में से किसी ने भी एक दूसरे ना तो कोई बात की ना ही विश किया।

संध्या रोज की तरह तैयार होकर स्कूल चली गई। प्रभात भी अपनी शॉप पर जाने की तैयारी करने लगा। वो भी मन ही मन सोच रहा था। जब उसने मुझसे बात नहीं की, मुझे विश नहीं किया तो मैं भी उसे विश नहीं करूँगा।

पर यह क्या? उसने तो अपनी गाड़ी किसी और दिशा में मोड़ ली। सबसे पहले एक फ्लावर शॉप पर पहुंचा वहां से एक बुके लिया। फिर मिठाई की दुकान से1 किलो काजू कतली और जो उसने 1 दिन पहले अपनी पत्नी के लिए फास्ट ट्रैक की घड़ी ली थी उन तीनों सामान को साथ में लेकर संध्या की स्कूल की तरफ बढ गया।

स्कूल में पहुँचने पर वॉचमैन ने आने का कारण पूछा। उसने बताया कि निजी मामला है और वो प्रिंसिपल मैम से मिलना चाहता है।

मैम के कैबिन में जाकर प्रभात ने उनसे कहा कि आज हमारी शादी की सालगिरह है। आज हमारे विवाह को 10 वर्ष पूर्ण हो गए हैं। इसी के उपलक्ष्य में मैं संध्या लिए एक छोटा सा तोहफा लेकर आया हूँ और हां मिठाई का डिब्बा भी साथ मे है ताकि आप सब लोग मुंह मीठा कर सकें।

मैम प्रभात का चेहरा देखते रह गए। उन्होने कहा की आप स्वयं ही देकर आ जाईये, जिससे संध्या को बहुत खुशी मिलेगी।

प्रभात एक हाथ में मिठाई का डिब्बा और दूसरे हाथ में बुके लेकर जब संध्या कि क्लास में दाखिल हुआ तो कुछ पल के लिये तो संध्या आश्चर्य चकित हो गई। इससे पहले की वह कुछ बोल पाती, प्रभात ने कह दिया हेप्पी ऐनिवर्सरी डीयर!!

इतना सुनते ही पूरी क्लास एक साथ बोल पड़ी हैप्पी एनिवर्सरी मैडम। सभी ताली बजाने लगे। संध्या शर्म से पानी- पानी हो गई। लेकिन मन ही मन उसे बहुत अच्छा लग रहा की शादी के दस साल बाद भी प्रभात उससे इतना प्यार करता है।

 

 सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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