Laxman rekha kavita
Laxman rekha kavita

लक्ष्मण रेखा

( Laxman rekha )

 

 

परिधि कों पार नही करना हे माता,वचन हमें दे दो।
कोई भी कारण हो जाए,निरादर इसका मत करना।

परिधि को पार नही करना…..

 

ये माया का अरण्य है, जिसमें दानव रचे बसे है।
कही भी कुछ भी कर सकते है,ये दानव दुष्ट बडे है।

ये छल से रूप मोहिनी रख कर,मन को छल जाते है,
सम्हालों हे कुल देवी, मन से आप अधीर बडे है।

परिधि को पार नही करना…..

 

आप ह़ै जनकनन्दिनी मिथिला कुल की राजकुमारी।
आप पर रघुकुल की मर्यादा का है भार भवानी।

नही होते है स्वर्ण मृग सुना नही, ये भ्रम है शायद,
अभी आते होगे श्री राम, लिए मृग छाल हे रानी।

परिधि को पार नही करना….

 

राम का नाम सकल कल्याण,विजित संसार की माया।
मार सकता ना काल विकराल,अभय है जिसकी छाया।

तोड पिनाक शिव धनुष साथ, आपको जिसने ब्याहा,
आप है संग धनुष कोदंड, तो डर क्यो आपको भाया।

परिधि को पार नही करना…..

 

ये झूठी माया जो , श्रीराम के स्वर मे लक्ष्मण बोले।
कोई कुछ भ्रम तो है शायद, हृदय इस भ्रम को खोले।

आपके कटु वचनों से आहत, मन ये सिसक रहा है,
कुटि के बाहर रेखा खींच के, लक्ष्मण उनसे बोले।

परिधि को पार नही करना…..

 

परिधि को पार नही करना हे माता, वचन हमें दो।
कोई भी कारण हो जाए, निरादर इसका मत करना।

 

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कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

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