“अम्मा सुनो ना! राहुल का एक्सीडेंट हो गया है!” उसकी बहन बदहवास अपनी मां से कह रही थी।
पूरे घर में अफरा तफरी मच गई। उस समय घर में ना राहुल के पिता थे ना ही उसके चाचा। घर में बस उसकी मां, बड़ी बहन एवं दादी थी।

क्या करें ? कैसे करें? किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था। उसकी बहन एवं दादी पड़ोस के ही किसी भाई के साथ तुरंत तैयार हुए और अस्पताल पहुंच गए। एक्सीडेंट घर से दूर हुआ था। किसी को कोई सूचना नहीं मिल पा रही थी ।इसलिए पुलिस वालों ने उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दिया था।

राहुल को खून बहुत बह गया था। वह बेहोश था। उसकी बहन बहुत हिम्मती थी। उसने एंबुलेंस वाले से बात करके लखनऊ के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया।

उस अस्पताल की जानकारी एंबुलेंस वाले ने ही दिया था। एक प्रकार से इन एंबुलेंस वालों की अस्पताल से सांठ गांठ रहती है। कमीशनखोरी के चक्कर में मजबूर मरीजों को वहां भर्ती करवा देते हैं और अपनी कमिशन लेकर रफू चक्कर हो जाते हैं।

अस्पताल के डॉक्टर ने कहा,-” देखो! मरीज बहुत सीरियस है, कुल खर्च लाख, डेढ़ लाख पड़ेगा। तुम्हें भर्ती करना है तो करो इसमें मेरी कोई गारंटी नहीं है। ”
उसे समय तो बच्चों की जान बचानी थी। कुछ सूझ भी नहीं रहा था कि क्या करें क्या ना करें और मरीज को भर्ती करवा दिया।

पहले ही दिन मरहम पट्टी आदि अन्य खर्च 15000 का बिल दे दिया। एक हफ्ते में डेढ़ लाख का बिल बना दिया।उसकी बहन ने डॉक्टर से कहा कि,–” अब तो राहुल को आराम हो गया है अब उसे निकाल दीजिए। आपने ही तो कहा था एक हफ्ते में निकाल देंगे।”

डॉक्टर ने कहा अभी इसे चार दिन और रखना है थोड़ा और ठीक हो जाए । इस प्रकार से निकालते समय 10 -12 दिनों में ढाई लाख का बिल बना दिया। किसी प्रकार से उसके पिता जो कि मुंबई में थे पैसे का इंतजाम करके भेजा।

उस अस्पताल में अधिकांश मैरिज रो करके ही जाता था। अस्पताल में भर्ती के बाद वह निकालता ही नहीं था ।कई कई बार पुलिस को बुलाना पड़ता था।

पुलिस वाले को तो जानते ही हैं। अधिकांश पुलिस वाले भी मिले होते हैं। मरीज के सामने कुछ कहते हैं। डॉक्टर के साथ इनका गुणा गणित अलग चलता रहता है। ऐसी स्थिति में परेशान होती है, लुटती पिटती है तो केवल जनता है। जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो क्या कहा जाए?

वर्तमान समय में देखा जाए तो अधिकांश प्राइवेट हॉस्पिटल मौत के सौदागर बने हुए हैं। इस समय सरकार का कोई कंट्रोल इन प्राइवेट हॉस्पिटलों पर नहीं है। किसी भी प्रकार से यह प्राइवेट हॉस्पिटल वाले आदमी को बचा तो लेते हैं लेकिन जिंदगी भर उसके कर्ज चुकाने में ही खत्म हो जाती है।

इन प्राइवेट हॉस्पिटलों का प्रतिदिन का खर्चा ₹ 10 से 15000 होता है। एक औसत व्यक्ति के एक महीने की मजदूरी 10 से 15000 रुपए होती है। इस प्रकार से यदि कोई गरीब व्यक्ति भूल से इन लाइसेंसी लुटेरों के चक्कर में फस जाए तो वह वर्षों तक कर्ज के बोझ तले दबा रहता है। इनका पूरा गिरोह होता है। जिनका काम ही होता है किसी प्रकार से फसाना।

एक बार यदि कोई गरीब व्यक्ति इनमें फस गया तो यह हड्डियों से बिना दूध निकाले छोड़ते नहीं।
उस अस्पताल में जितने भी मरीज जाते थे सभी एंबुलेंस से ही आते थे। इन एंबुलेंस वालों का अपना कमीशन खोरी रहती थी ।

सबसे पहले दुनिया भर की जांच करवाते हैं। फिर महंगी से महंगी दवाई देते हैं। दवाओं की हालत यह है कि 10 -20 रुपए की दवाई भी हजार रुपए में दे सकते हैं। सरकार भी दवा कंपनियों को खुली छूट दे दी है जितना लूट सको लूटो, गरीबों को। भारत की गरीब जनता लूटने के लिए तैयार बैठी हैं ।हम तुम्हें खुला लाइसेंस दे रहे हैं।

सरकार के नाकामयाबी का ही नतीजा है कि प्राइवेट हॉस्पिटल वाले गरीब जनता को जम के चूस रहे हैं। सरकारी अस्पताल वाले सभी डॉक्टर अधिकांशतः अपना प्राइवेट भी खोले बैठे रहते हैं। सरकार को तो जानती है कि वह कुछ कहेगी नहीं। बैठे-बैठे सैलरी भी लेती रहती है। आप किसी भी सरकारी अस्पताल में चले जाइए तो अधिकांश डॉक्टर मुर्दे जैसे दिखते हैं। जिसमें मरीजों की सेवा का कोई उत्साह ही नहीं देखा जाता है।

भारत की जनता आखिर जाएं तो कहां जाए। या तो प्राइवेट हॉस्पिटलों के यहां लूटने के लिए जाए! या तो फिर सरकारी अस्पताल में मरने के लिए जाए।?

एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई हैं। जनता दोनों तरफ से पिस रही हैं। जो डॉक्टर मरीज के लिए ईश्वर का अवतार सिद्ध होता था आज हैवान बनकर के रह गया है। इसमें से जो अच्छे डॉक्टर भी हैं वह भी पिस रहे हैं। वे यदि कम फीस लेने चाहे तो यह लाइसेंसी लूटेरे उसके पीछे लग जाते हैं।

तू बड़ा सेवक बनता फिरता है। देख सरकार ने मुझे लूट की परमिशन दे रखी। अब जितना मर्जी उतना लूट लो चूस लो। इतना चूस लो कि दो-चार साल तक वह कर्ज के बोझ से ही ना उठ पाएं।

जो मीडिया को जनता के मूल समस्याओं को दिखाना चाहिए था वह धर्म का नशा चढ़ा -चढ़ा करके जनता को सुला दे रही है। यदि मीडिया में इन लाइसेंसी लुटेरों के लूट का पता चलेगा तो जनता जागृत हो जाएगा। फिर यह लूट की दुकान कैसे चला पाएंगे। ऐसी स्थिति में गरीब जनता तो भगवान भरोसे ही रहने को मजबूर है।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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