
महर्षि वाल्मीकि
( Maharishi Valmiki )
बुरे कर्मों को छोड़कर सत्कर्मों में लगाया ध्यान,
साधारण इंसा से बनें महर्षिवाल्मीकि भगवान।
देवलोक के देवर्षि मुनि नारद जी के यह शिष्य,
प्रचेता के ये दसवें पुत्र और संस्कृत के विद्वान।।
महर्षिवाल्मिकी जीवन से मिलती प्रेरणा हजार,
जो कभी राहगीर को लूटकर भरा पेट परिवार।
आदिकवि एवं मुनि कहलाएं प्रसिद्ध रचनाकार,
श्रीराम का नाम जपकर हुऐं भवसागर से पार।।
एक रत्नाकर से बन गऐ यह महर्षि ऐसे महान,
महाकाव्य रामायण रचकर दिया सबको ज्ञान।
जीवन अपना बदल लिया बदल गया वह नाम,
जैसा करेगा वो वैसा पाऐगा ये बताया विधान।।
माता सिया को आश्रय दिया पुत्री लिया बनाई,
लव और कुश को ज्ञान दिया हरा न पाऐं कोई।
स्वर ज्ञान और पराक्रमी दिया अतुलित ये ज्ञान,
क्या घटेगा भविष्य में लिख दिया पहले बताई।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )