मै हिंदी हिंदुस्तान की

( Mai Hindi Hindustan Ki ) 

 

मैं हिंदी हिंदुस्तान की, भारत के सुज्ञान की
हिंदु मुस्लिम सिख इसाई, हर भारत के इंसान की।

पूरब से पश्चिम की भाषा उत्तर से दक्षिण की भाषा
मै हिंदी हिंद निशान की ,मैं हिंदी हिंदुस्तान की।

सूर के सुख का सागर हू , भाव बिहारी गागर हूं
भूषण का आभूषण हूं ,श्रद्धा का मनु नागर हूं।

तुलसी का बैराग हूं मैं, मीरा का प्रेम राग हूं मैं
पंत निराला केशव के, जीवन का हर भाग हूं मैं।

मां का प्यार दुलार हूं मैं,पिता का कर्म आधार हूं मैं
पति पत्नी के प्यार में ,जीवन का व्यवहार हू मै।

प्यार की भाषा मेरी है , व्यवहार की भाषा मेरी है
धन्य भाग्य हम भारतभाषा, सरकार की भाषा मेरी है ।

मेरी एक अभिलाषा है, अपनों से बड़ी आशा है
अपने मुझको ना छोड़े ,गैरों से तो मिले निराशा है।

इस पार की भाषा हो हिंदी, उस पार की भाषा हो हिंदी
कब ऐसा दिन आए ,जब संसार की भाषा हो हिंदी।

 

कवि :  रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)

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