
मैं अक्सर
मैं अक्सर
गली में बजती
तुम्हारी पायल के घुँघरुओं की
रुनझुन से समझ लेता हूँ
तुम्हारा होना……
बजती है जब-जब
सुबह-शाम या दोपहर
जगाती है दिल की धड़कन
और देखता हूँ झांक कर
बार बार दरवाजे से बाहर…….
बहुत बेचैन करती है मुझे
छनकती तुम्हारी पायल
और खनकती पायल के साथ
धड़कती है मेरी धड़कनें
तुमसे दो बातें करने को……..
?
कवि : सन्दीप चौबारा
( फतेहाबाद)
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