डॉ. बीना सिंह “रागी” की कविताएं | Dr. Beena  Singh Raggi Poetry

गंगा ( मनहर घनाछरी छंद )

गंगा मैया ने है ठाना
हमें धरा पे है आना
भागीरथ माध्यम है
जय गंगा माई की
हर्षित मुदित होके
शिवजी ने जटा खोले
कल कल धरा पर
आई गंगा माई जी
पावन साफ पाक है
बुझे सबकी प्यास है
जीवन में सदा काम
आती गंगा माई जी
देवभूमि है हमारी
गंगा माई महतारी
वेद ग्रंथों ने आरती
गाई गंगा माई की

चलते चलते कुछ यूं ही


कहीं कोई होठों पर अपने सुरताल सजा रहा है
कहीं किसी का भूख से भूखा पेट कुलबुला रहा है


दुखिया के खातिर वो जो मुखिया बने हैं सुखिया
भोजन में 56 भोग पूरी खीर गुलगुला चबा रहा है


कठपुतली है हम सब डोर ऊपर वाले की हाथों में
इशारे पर नाचाता है और वह झुनझुना बजा रहा है

दौलत शोहरत के संग बुलंदियों पर हम भी चढ़ जाए पर
बीना तुमको जात-पात अमीर गरीब का सिलसिला दबा रहा है

मैं मां हूं


कारी कारी बदरी सन सनन बहती हवा शीतल पुरवाई हूं
हां साब मैं मां हूं हंसी-खुशी के संग संग दर्द और तन्हाई हूं
नेह निमंत्रण देकर रिश्तों को बांधे रखा हमने
फर्ज समझ बोझ को अपने दोनों कांधे रखा हमने
जननी हूं धात्री हूं खुदा रब्बा गाड भगवन की परछाई हूं
हां साब
चंचल चपल दौड़ती भागती चिंता की तरंग
निश दिन भेदती तीर आयु का हमारा अंग अंग
हूं सरिता सी कल कल झरना सी झर झर
तो कभी कभी समंदर की गहराई हूं
हां साब
संतान के सुखे कंठ को अपने स्तन के दूध से सींचा हमने
मुफलिसी में खून की जान बचाने को खुद को कोठे पर बेचा हमने
रंभा मेनका उर्वशी सावित्री राधा मीरा के संग संग सीता माई हूं
हां साब मैं मां हूं हंसी खुशी के संग संग दर्द और तन्हाई हूं
लोग कहते हैं मैं ही खुदा रब्बा गॉड भगवान की परछाई हूं

Dr. Beena Singh

डॉ बीना सिंह “रागी”

( छत्तीसगढ़ )

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