Man ka Rajmahal
Man ka Rajmahal

मन का राजमहल खाली है

( Man ka rajmahal kahan hai )

 

मन का राजमहल खाली है, खुशियों की बहार बनो।
महका दो मन की बगिया, आकर तुम गुलजार करो।

बन जाओ मन की मलिका, महलों की प्राचीर कहे।
दिल का सिंहासन खाली है, आकर तुम श्रंगार करो।

महक उठी है मन की वादियां, भाव सुमन हार रहे।
प्यार के मोती पिरोकर, तुम प्रेम का इजहार करो।

सज गया दरबार मन का, धड़कनों की पुकार कहे।
बोल रहा है दिल का इकतारा, सुर सदाबहार करो।

आ जाओ रूप की रानी, काले केश घटाओ सी।
झील सी इन आंखों से तुम, प्रेम की बौछार करो।

खोल दिए दिल के दरवाजे, पलकें बनी तोरण द्वार।
स्वागत में बैठे नैन बिछाए, थोड़ा तो एतबार करो।

कंचन सी काया तुम्हारी, कनक भवन हृदय हुआ
दिल का आंगन दमके, स्वर्ण प्रभा आलोक भरो।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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