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मन मंदिर में दीप ज्योति जलाता रहा | Man Mandir Mein

मन मंदिर में दीप ज्योति जलाता रहा

( Man mandir mein deep jyoti jalta raha )

 

हवन करते हाथ खुद का जलाता रहा।
घाटे का लेकर सौदा मैं मुस्कुराता रहा।

ठगती रही मुझे दुनिया मैं ठगाता रहा।
प्यार के मोती लेकर मैं यूं लुटाता रहा।

सद्भावों की गंगा मै नित बहाता रहा।
तूफानों भरी डगर कदम बढ़ाता रहा।

हौसलों से व्योम परचम लहराता रहा।
ख्वाब सुरीले से मन में सजाता रहा।

रूठ गए अपने सारे सदा मनाता रहा।
मन मंदिर में दीप ज्योति जलाता रहा।

आजा मनमीत मैं तुझको बुलाता रहा।
शब्दों का सुमन हार सदा सजाता रहा।

गीत कोई प्रेम भरा मैं गुनगुनाता रहा।
मुड़कर दे आवाज मुझको आता रहा।

खिले चमन में खुशबू महकाता रहा।
प्रीत की डगर पे चलकर जाता रहा।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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