“लंगूर के मुँह में अंगूर”

 

एक बंदे ने शायर दोस्त को घर पर बुलाया ,
अपनी निहायती खूबसूरत बीवी से मिलाया।

दोस्ती पक्की है बीवी को एहसास दिलाया ,
शायरी में ही अपने दोस्त का परिचय बताया।

सुनो मेरा दोस्त एक मल्टीटैलेंटेड कलाकार है ,
शायरी कविता का इस पर शुरू से भूत सवार है ।

यह सुन दोस्त की बीवी ने शायर से आग्रह किया ,
कुछ हमारी शान में भी तो सुना दो ना भईया।

इतना सुनते ही शायर बड़ा खुश हो जाता है ,
भाभी की खूबसूरती पर मजेदार शे’र पढ़ता है।

या खुदा तेरा भी कैसा अज़ीब दस्तूर है ,
या खुदा तेरा भी कैसा अज़ीब दस्तूर है ,
लंगूर के हाथ में तू ने थमा दिया अंगूर है।
लंगूर के हाथ में तू ने थमा दिया अंगूर है ।

यह सुनकर उसका दोस्त भड़क जाता है ,
फिर तो सीधा हाथापाई पर उतर जाता है।

नालायक तेरी हिम्मत कैसे हुई वह बोलता है ,
आखिर मेरी बीवी को तू लंगूर कैसे कहता है।

वह बोला मैंने तो इनका मान बढ़ाया है ,
भाभी को लंगूर नहीं अंगूर बताया है।

 

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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