मनमोहक कृष्णा | Manmohak Krishna
मनमोहक कृष्णा
( Manmohak Krishna )
मन को लुभा रही कान्हा तेरी चंचल चितवन।
देखूं तुझको खो जाऊं सुंदर छवि में मनमोहन।
तेरी बंसी की धुन सुनते ही रोम रोम हो मेरा तरंगित।
तेरे दर्शन पा जाऊं तो तन मन हो जाए सुगंधित।
मधुर मुस्कान तेरे होंठों की दिल चुरा ले जाए है छलिया।
होंठों पर तेरे थिरकती जब जब सांवरे मधुर मुरलिया।
मोर मुकुट से सज रहा मनमोहन तेरा सुंदर मस्तक।
रिझा रहे नैनन को कानन तेरे कुण्डल से सुशोभित।
बैजंतीमाला कंठ पर मन आनंदित करती जा रही।
तेरे चरणों की छवि प्रभु सबके अंतस को लुभा रही।
बैठ सामने तुझे निहारूं, निहाल हुई मैं जा रही।
नैनों में अपनी तुझे बसाकर गुलाल हुई मैं जा रही।
बांध लूं अपने कान्हा को ह्रदय की गिरह से।
मिलन ये सजा प्रेम से, ना टूटे किसी विरह से।
कान्हा का ही बुना हुआ है दुनिया का सब ताना बाना।
कान्हा को मन में बसा लिया या कान्हा का ही प्रेम पहचाना।
शिखा खुराना