Marwadi poem

लाय बरस री | Marwadi poem

लाय बरस री

 

सन सन करती लूंवां चालै आकांशा सूं अंगारा
चिलचिलाती दोपारी म बिलख रहया पंछी सारा

 

आग उगळती सड़कां तपरी बळती लाय पून चलै
झूळस ज्यायै काळजो सगळो ताती रेतां पग बळै

 

गरम तवा सी तपै धरती च्यारूं चोखटां लाय बळै
पाणी ढूंढता फिरै पंछीड़ा भरी दोपारी दिन ढळै

 

यो जेठ रो महिनो तातो सूरजी तपै होकै लाल
कोहराम माचरयो सगळै गरमी सूं हो रया बेहाल

 

फिरै मुसाफिर छांव ढूंढतो पड़ै तावड़ो तेज तर्रार
कठै दिखै ना ठण्डी छांया लूंवा चालै बेशूमार

 

जै निकळो तावड़ा म थोड़ो ध्यान राखज्यो थारो
लूंवा री आ फटकारां म निकळै काळजो म्हारो

 

ई गरमी म फेल होयरया कूलर पंखा सारा
तन बदन सू आवै पसीनो तपती धोळी दोपारां

 

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कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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