
हमसफर
( Humsafar )
दो अजनबी
बन गए हमसफर
चल पड़े नई डगर
प्यार के पंख ले
सिलसिले चल पड़े
एक दूसरे को वो
बखूबी समझते रहे
एक दूसरे का सम्मान
आपस में करते रहे
जीवन में रिश्तो के
हर रंग भरते रहे
कदम दर कदम
आगे बढ़ते रहे
कुछ मैंने कहा
वह उसने सुना
आंखों आंखों में
बात करने लगे
कुछ मैंने सुना
जो उसने कहा
कठिन रास्ते जो
सरल बन गए
हमसफर मेरे
जिंदगी के सफर
चमन बन गए
डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )
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