मत करना अभिमान | Kavita
मत करना अभिमान
( Mat karna abhiman )
माटी का ये पुतला तेरा,दो दिन का मेहमान।
न जाने कब क्या हो जाए,मत करना अभिमान।।
सुंदर काया देख लुभाया , मोह माया में जकड़ गया।।
अन्न धन के भंडार भरे जब, देख ठाठ को अकड़ गया।
बिना काम ही झगड़ गया, सोच समझ नादान।।
न जाने कब क्या हो जाए, मत करना अभिमान।।
अहंकार भरा है तेरे घट में, मेरा मेरा कर रहा ।
झूठ कपट पाखंड रचाया, नहीं किसी से डर रहा ।
दंड पाप का भर रहा, अब भी कर ले पहचान।।
न जाने कब क्या हो जाए, मत करना अभिमान।।
दो दिन का है जोश जिगर में, काया निर्बल हो तेरी।
हिम्मत टूटी रोग बढेंगे , दूर रहेंगे सब चेरी ।।
छोड़ के सारी हेरा फेरी, बन जा तू इंसान।।
न जाने कब क्या हो जाए, मत करना अभिमान।।
पर सेवा और हरि की भक्ति, प्रेम भाव मन धरले तूं।
मानव तन अनमोल मिला है, हृदय को निर्मल कर ले तूं।
जांगिड़ एक दिन मर ले तूं , चाहे कितनी भरो उड़ान ।।
न जाने कब क्या हो जाए, मत करना अभिमान।
कवि : सुरेश कुमार जांगिड़
नवलगढ़, जिला झुंझुनू
( राजस्थान )