Mere mann ka shor
Mere mann ka shor

मेरे मन का शोर

( Mere mann ka shor )

 

विचारों की उथल-पुथल उमड़ा मेरे मन का शोर
कल्पनाओं ने उड़ान भरी आया भावों का दौर

 

भावो का ज्वार हिलोरे ले रहा हलचल मची मन में
उमंगे उठ रही नित नई साहस भर रहा नस-नस में

 

प्रचंड भाव प्रवाह मन का तूफान बन कर उठ रहा
विप्लव सा आ गया मन में पहाड़ भीषण मिट रहा

 

मन में उधेड़बुन रही अंतर्मन विचार पनप रहे
सिंधु की लहरों से उठते जो मन भाव जग रहे

 

विनय शील गायब हुये चेतना हो गई उग्र सी
मनमंदिर में जोत जली संवेदना हुई भद्र सी

 

वेदना पीड़ा दर्द कराह मन में गुंजायमान हुए
सुख संतोष धीरज आए भाग्य दीप्तिमान हुए

 

भावनाओं ने खूब मचाया मेरे मन का शोर
शब्द सारे मचल पड़े सुंदर सजीले चितचोर

 ?

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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