Manav tan
Manav tan

मानव तन

( Manav tan )

मनहरण घनाक्षरी

 

 

नश्वर सी यह काया,
तन को हमने पाया।
देह गात स्वरूप को,
दाग ना लगाइए।

 

कंचन सी काया मिली,
पंचतत्वों का शरीर।
मानव तन भाग्य से,
हरि कृपा पाइए।

 

चंद सांसों का खेल है,
आत्मा का जुड़ा है तार।
मानुष जन्म में मिला,
लोक सुख पाइए।

 

माटी का पुतला यह,
नाशवान है शरीर।
अभिमान जगत में,
कभी ना दिखाइए।

 ?

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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