Ghazal || मिटा जब तेरा नाम इस दिल के दर से
मिटा जब तेरा नाम इस दिल के दर से
(Mita Jab Tera Naam Is Dil Ke Dar Se)
मिटा जब तेरा नाम इस दिल के दर से।
हटा बौझ- सा कुछ कोई जैसे सर से।।
हुई हम को नफ़रत शकल से बहुत ही।
गिरे जब से हो तुम हमारी नज़र से।।
करे कैसे विश्वास फिर वो किसी का।
मिला जिसको धोखा सदा हमसफर से।।
वहां सामने भी मेरे तुम न आना।
चलेगा जनाजा ये मेरा जिधर से।।
भले माफ कर दे मेरा दिल ये तुम को।
सदा बच के रहना खुदा के कहर से।।
न पैदा हुआ वो बशर इस जहां में।
सदा जो बचा हो ग़मों के असर से।।
रहा डर हमेशा ही बदनामियों का।
नहीं खौफ पाया किसी और डर से।।
तलाशा हमेशा ही तन्हाइयों को।
बनी दूरियां- सी यहां हर बशर से।।
मिलेगी भला मंजिलें कैसे उनको।
भटक -सा गया हो जो अपने सफर से।।
मनाते भी कैसे भला पास जाकर।
तेरे आंसुओं से थे हम बेख़बर से।।
कवि व शायर: मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)