नज़र का तीर जब निकला यहां तेरी कमानी से
नज़र का तीर जब निकला यहां तेरी कमानी से
नज़र का तीर जब निकला यहां तेरी कमानी से।
हज़ारों हाथ धो बैठे जहां में जिंदगानी से।।
बहुत सोचा लगा हमको ख़ता तेरी नहीं कोई।
शिकायत है हमें ज़ालिम तेरी कातिल जवानी से।।
किया घायल सदा तूने अदाओं से हमें अपनी।
हुआ जादू मिरे दिल पर लगा दी आग पानी से।
हटे पीछे कदम अपने डरे अंजाम से हम तो।
दिलों को तोङ चल देना तेरी आदत पुरानी से।।
मिटे कब दाग़ वो दिल से दिये जो जख्म थे तूने।
“कुमार” याद आते हो हमेशा उस निशानी से।।
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