Hindi Poetry On Life | Hindi Poetry -मित्र
मित्र
( Mitra )
बाद वर्षो के कितने मिले हो मुझे,
अब कहो साल कैसा तुम्हारा रहा।
जिन्दगी मे कहो कितने आगे बढे,
जिन्दगी खुशनुमा तो तुम्हारा रहा।
मित्र तुम हो मेरे साथ बचपन का था,
पर लिखा भाग्य मे साथ अपना न था।
ढूँढता मै रहा हर गली मोड पर,
पास मेरे मगर तेरा नम्बर न था।
टिस मुझको सताती रही रात दिन,
याद से मेरे भूले कभी ना थे तुम ।
आज खुश हूँ बडा मुझको तुम मिल गये,
तुम थे बचपन मेरे मुझको तुम मिल गये।
लो ये कविता पुरानी मै फिर लिख रहा,
शब्द दो चार कुछ मै नया जड रहा।
पढ के इसको मेरी याद आएगी तो ,
शेर लंम्हे पुराने वही लिख रहा ।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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