
कल्पना
(Kalpana )
नमक है पोर पोर में सुन्दर बडी कहानी तेरी।
सम्हालोगी कैसे सूरज सी गर्म जवानी तेरी।
भँवर बन कर हुंकार डोलता है तेरे तन मन पे।
हृदय के कोने में अब भी है वही निशानी तेरी।
रूप तेरा ऐसा की देख, सभी का यौवन मचले।
कुँवारो का दिल जैसे गर्म तवे पे,पानी छंटके।
दुपट्टे को दांतो से हाय दबा कर, ऐसे चलना।
लगेगा कर्फू शहर में,भीड निकल के ऐसे भडके।
भोर की लाली शाम सुहानी,चाल मस्तानी तेरी।
उभरता यौवन तेरा रंग बसन्ती धानी तेरी।
कल्पना से भी ज्यादा,आज है रूप दिवानी तेरी।
शेर पे चढा फाग का रंग, तो आओ खेले होरी।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )