
मृत्यु
( Mrtyu )
हम अकेले बइठ के कुछ सोचत रहनी
गाल पे रख हाथ कुछ देखत रहनी
तलेक कान में कहीं से घंटी के आवाज गइल
निंद टुटल, होश उड़ल अउर दरद भइल
एगो सवारी लेट, चपाटी पे चलल
आगी, माला,फूल,पानी सब संघे बढल
कवन देश-दुनिया अउर राह में चलल
सब छोड-छाड राज सिंहासन बस चल पड़ल
कर आंख बंद चुपके से चुपचाप भइल
हाथ फइलल, गोंड पसरल अउर सब सन्न भइल
सोर-सराबा, हलला-गुलला के भी ना पता चलल
देख इ सब दिल में जोर से दरद उठल
ज्ञान-विज्ञान अउर संज्ञान सब फिका पडल
कवन देश हऽ आज तक ना केहु के पता चलल
हसत खेलत कूदत नीमन रहल
तनी देर में का भइल ना केहू के पता चलल
दिल दरद पिडा से भरल, आंख रो पड़ल
भगवान अउर इंसान में तब फरक मिलल
कुछ बा इंसान के सिवा जे इ दूनिया चलावेला
आज इ देख अउर सोच के मालूम चलल ।
रचनाकार – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
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