मुह़ब्बत के वादे निभाने की रुत है

मुह़ब्बत के वादे निभाने की रुत है

मुह़ब्बत के वादे निभाने की रुत है

मुह़ब्बत के वादे निभाने की रुत है।
यही तो नशेमन सजाने की रुत है।

ख़िज़ाएं बहारों में ढलने लगी हैं।
फ़िज़ाएं भी करवट बदलने लगी हैं।
न यूं दूर जाओ निगाहें चुरा कर।
यही तो निगाहें मिलाने रुत है।
मुह़ब्बत के वादे निभाने की रुत है।

गुलाबों का शाख़ों पे हिलना तो देखो।
ये शाख़ों से शाख़ों का मिलना तो देखो।
ज़रा पास आ कर गले तो लगा लो।
यही तो दिलों को मिलाने की रुत है।
मुह़ब्बत के वादे निभाने की रुत है।

हवा महकी-महकी,घटा बहकी-बहकी।
के है आतिश-ए-इ़श्क़ भी दहकी-दहकी।
कहां जा रहे हो यहां आओ दिलबर।
यही तो दिल-ओ-जां लुटाने की रुत है।
मुह़ब्बत के वादे निभाने की रुत है।

मुह़ब्बत के वादे निभाने की रुत है।
यही तो नशेमन सजाने की रुत है।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़

पीपलसानवी

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